ज़िंदगी की भाग-दोड में जाने वो पल कहाँ खो गए
जब कुछ पल बैठ कर चैन से बतिया लिया करते थे
एक चाए के प्याले संग
जाने वो पल कहाँ खो गए
जब सावन की पहली बारिश
तन और मन दोनों को भिगो जाती थी
जाने वो पल कहाँ खो गए
जब कितने ही पल डूबते सूरज को निहारते बीत जाते थे
जब घंटो तक चाँद-तारो की दुनिया मे खोये रहते थे
जाने वो पल कहाँ खो गए
जिसमे बसा था इन्द्रधनुष का हर रंग
हर रंग दूजे से जुदा था
पर फिर भी एक-दूजे से जुडा था
जाने वो पल कहाँ खो गए
जब हर चिंता से मुक्त था जीवन
बस अपनी ही छोटी सी दुनिया में मस्त था जीवन
जाने वो पल कहाँ खो गए
काश लौट कर आ सकते वो पल
बहुत बढिया लिखा है-
जब हर चिंता से मुक्त था जीवन
बस अपनी ही छोटी सी दुनिया में मस्त था जीवन
जाने वो पल कहाँ खो गए
काश लौट कर आ सकते वो पल
कोई लौटादे मेरे बीते हुए दिन ,प्यारे पल छिन, तथा जाने कहाँ गए वो दिन इसी तरह जाने वो पल कहाँ खो गए में बीते वक्त की अच्छी तस्वीर है
जाने वो पल कहाँ खो गए
काश लौट कर आ सकते वो पल
kitn igaheri sacchai hai….
bahut hi sundarl ikha hai apane…
एक अच्छी कविता पढ़वाने के लिए धन्यवाद
गजल की क्लास चल रही है आप भी शिरकत कीजिये http://www.subeerin.blogspot.com
वीनस केसरी
bahut khoob likha hai….
yadon ke taron ko jhanjhan diya apne….
jaari rahe…
एक अक्टूबर से आज तक कोई रचना क्यों नहीं ?
दीपावली की हार्दिक शुभ कामनाएं /दीवाली आपको मंगलमय हो /सुख समृद्धि की बृद्धि हो /आपके साहित्य सृजन को देश -विदेश के साहित्यकारों द्वारा सराहा जावे /आप साहित्य सृजन की तपश्चर्या कर सरस्वत्याराधन करते रहें /आपकी रचनाएं जन मानस के अन्तकरण को झंकृत करती रहे और उनके अंतर्मन में स्थान बनाती रहें /आपकी काव्य संरचना बहुजन हिताय ,बहुजन सुखाय हो ,लोक कल्याण व राष्ट्रहित में हो यही प्रार्थना में ईश्वर से करता हूँ “”पढने लायक कुछ लिख जाओ या लिखने लायक कुछ कर जाओ “” कृपा बनाए रखें /
जब सावन की पहली बारिश
तन और मन दोनों को भिगो जाती थी
जाने वो पल कहाँ खो गए
wah..wa
sunder abhivyakti